वह पल, जब वो मुझसे मिलने आते थे
कहीं खो गए हैं।
अंधेरे के साये में,
कहीं सो गए हैं।
तुम मुझसे मिलने आओ कभी
उन पलों को साथ लाओ कभी
वह जो हम दोनों में प्यार था,
एक हसीन एतबार था…
एक वादा था निभाने का,
तुम भूल गए मुझे याद रहा…
वह महक मेरी सांसों की,
वह जलता दिया मेरी आंखों का,
वह रातें मेरी बाहों की,
तुम भूल गए मुझे याद रहा..
एक सेहर तुम मुझको उठाओ कभी
जिस गहराई में सुलाया है
उसे नींद से जगाओ कभी
तुम मुझसे मिलने आओ कभी
उन पलों को साथ लाओ कभी
कहने को तो आज़ाद हूं ,
लेकिन कुचल दिए जाने के लिए…
जन्म हुआ था मेरा,
बग़ैर मौत मर जाने के लिए…
सजती संवरती थी,
नोच नोच कर तड़पाने के लिए…
मेरी नादान, मासूम मोहब्बत
मेरे एहतमाद को पाने के लिए…
इंतज़ार में हूं….
तुम मुझसे मिलने आओ कभी
उन पलों को साथ लाओ कभी।
सुना है मोहब्बत, मोहब्बत नहीं
वासना की एक झील है,
जिसमें डूब कर तुमने
किनारे मुझे लगा दिया….
कुछ साथी मुझसे छूट गए
मेरे अपने मुझसे रूठ गए..
कुछ सवालों के जवाब देने
तुम मुझसे मिलने आओ कभी
उन पलों को साथ लाओ कभी।
वह चमकता चांद मेरे गालों का,
वह भंवरा मेरे बालो का
वह नाज़ुक सिलवटे मेरे आँचल की
वह नर्म लकीरें मेरे काजल की
बस इतना जानना चाहे है
किस लिए मेरा साथ चूना…
मेरी मौत का जाल बुना…..
तुम मुझसे मिलने आओ कभी
उन पलों को साथ लाओ कभी।
शाइस्ता बानो, उदयपुर