जमानत शब्द अपने आप में काफी कुछ कहने में भी सक्षम है औऱ लोगों को सब कुछ समझाने में भी सक्षम है। न्यायालय से किसी आरोपी को जमानत मिलना हमारे हिंदुस्तान के सविधान की मजबूती का परिचय है। खैर जमानत मिलना व नहीं मिलना एक कानूनी प्रक्रिया है।
देर सवेर हर कोई जमानत का हकदार है। अब सवाल यहाँ पर यह उठता है कि क्या जमानत मिलने पर जश्न जायज है।
एक आम आदमी झूठे आरोपों में अथवा शक के आधार पर कब जेल जाता है औऱ कब जमानत पर बाहर आता है सायद ही किसी को पता लगता हो पर हिंदुस्तान के राजनेताओं व अभिनेताओं का जेल जाना व जमानत मिलना भी किसी उत्सव में से कम नहीं है।
कल तक आरोपीयो पर इस्तीफा देने की बात कहने वाले आरोपों पर जेल भी चले जाते है पर इस्तीफा नहीं देते है। यहीं राजनीति हिंदुस्तान को खोखला कर रही है।
बुधवार को आम आदमी के पार्टी के नेता व राज्य सभा सांसद संजय सिंह को लगभग छः महीने के बाद जमानत मिली है पर उस जमानत को भी जश्न की तरह लेना मेरे लिहाज से उनके लिए सायद बड़ी उपलब्धि रही हो।
जब से दिल्ली में शराब घोटाला उजागर हुआ है तब से आम आदमी से न निगलते बन रहा है औऱ न ही उगलते बन रहा है।
वो हमेशा अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्र सरकार पर अत्याचार व अन्याय की बात कहकर अपने आपको कट्टर ईमानदार घोषित करते है। राजनीति में कौन कितना ईमानदार है यह हिंदुस्तान की जनता भी ईमानदारी से जानती है। मैं बात संजय सिंह की कर रहा था तो जेल से बेल मिलना न तो किसी के आरोपी का बेकसूर होने का प्रमाण है न ही उसके आरोपी होने का प्रमाण है।जब बेल किसी का प्रमाण नहीं है तो जश्न किंस बात का…..
जश्न जनता को गुमराह करने का….. जश्न जनता के सामने अपने आरोपों पर सफाई देने का औऱ जश्न अपनी राजनीति में कथनी व करनी में अंतर दर्शाने का…
यही आम आदमी पार्टी दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ ट्रक भर कर कागजो की बात करके उन्हें करप्शन में लिप्त बता रहे थे औऱ इस्तीफा माँग रहे थे।जब खुद पर आई तो सविंधान खतरे में है, तानाशाही व न जाने कौनसी बाते याद आई।
किसी को जेल होती है तो बेल भी मिलती है इसका मतलब यह नहीं कि आप बेगुनाह साबित हो गए है। आपको क़ानूनी लड़ाई तो लड़नी ही है। जमानत मिलना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है।
देश की जनता को सपने दिखाए उसके साथ जो धोखा हुआ है उस पर मंथन करना चाहिए….