हिंदुस्तान के लोकतंत्र व लोकतांत्रिक मूल्यों का बखान पूरे विश्व में होता है।देश औऱ प्रदेश की सरकारों को चुनने का अधिकार जितना मजबूती से हिंदुस्तान में है उतना सायद ही किसी देश में हो……. कहने को लोकतंत्र की दुआई हर देश देता है लेकिन कौन कितना लोकतांत्रिक प्रक्रिया से गुजरता है यह हर कोई जानता है। हिंदुस्तान में हर पाँच वर्ष के बाद लोकतंत्र का महापर्व मनाया जाता है। इसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती के लिए हिंदुस्तान में लोकसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। लगभग सभी राजनैतिक दलों ने अपने सुरमा चुनावी समर में उतार दिए है।हर राजनैतिक दल अपने अपने उम्मीदवारों के जीतने की अभिलाषा के साथ जनता के सामने वोट माँगने जा रहे है जो उनका अधिकार है। जनता किसे चुनती है यह जनता का अधिकार है।मतदान के समय जनता वोट देते समय यह जरूर सोचती है कि हम किसके नेतृत्व में सुरक्षित है, कौन हमारा रखवाला है। राष्ट्रीयता व देश प्रेम के साथ हमारी सभ्यता व संस्कृति को नई पहचान देने में कौन सक्षम है। बढ़ती महंगाई व बेरोजगारी से कौन निजात दिला सकता है।
लोग बहुत सोच समझकर अपने वोट को किसी के पक्ष में देते है।
असली लोकतंत्र की यही पहचान है कि मतदान मुद्दों पर हो जिसमें बेरोजगारी, भृष्टाचार, भाई भतीजावाद व महंगाई, सुरक्षा व अन्य सांस्कृतिक धरोहर को सहेज कर रखने जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हो…
जून में जनता का फैसला भी आ जायेगा। सत्ता की चाबी किसके हाथ में आएगी यह कहना अभी जल्दबाजी होगी पर इतना जरूर है कि इस बार मुद्दों पर मतदान हुआ तो काफी कुछ देखने को मिल सकता है।देश की जनता ने दो कार्यकाल मनमोहन सरकार के व दो कार्यकाल मोदी सरकार के देख लिए है। अब दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करने का भी अच्छा अवसर है।
देश के मतदाताओं को दिल व दिमाग दोनो का उपयोग करते हुए बड़ी सूझबूझ के साथ अपने मतदान का प्रयोग करना होगा ताकि देश को सही नेतृत्व मिल सके। सत्ता की चाबी जनता किसे सौपेगी यह तो चार जून को ईवीएम के पिटारे से ही पता चल पाएगा लेकिन इतना तय है देश की जनता मजबूत नेतृत्व के हाथों में ही देश सौपेगी……… हम सभी को भी लोकतंत्र की मजबूती के लिए घर से बाहर निकल कर वोट की चोट से देश के आकाओं को अपनी शक्ति का अहसास करवाना है।
( लेखक वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक है)
गुलाब कुमावत खीमेल
सांचौर, राजस्थान